सांझ कुन के बेरा म गुड़ाखू घंसरत, दू झिन मनखे मन तरियापार म बइठके, दुख सुख गोठियावत रहय। एक झिन डमचगहा रहय , दूसर जादूगर। दुनो पक्का संगवारी रहय। गांव गांव, गली गली किंजर किंजर के, नावा नावा खेल देखाये तब कहूं ले दे के, बपरा मन के परिवार चलय। धीरे धीरे एकर मन के धनधा मार खाय लगिस। दुनो झिन ला भविस के फिकर होगे। जादूगर पूछथे – तैं का खेल देखाथस तेमा तोर धनधा मनदा परत हे। डमचगहा किथे – अगास म पातर डोरी बांध, नोनी ला ये छोर ले ओ छोर बाजा के धुन म रेंगाथंव। अऊ नानुक बाबू ला कथरी म लपेट के ये मुड़ा ले ओ मुड़ा, झुलना कस झुलाथंव। देखइया मन, हाय दई …….., हाय नानुक लइका ………. कहिके सरधा अनुसार चार पइसा, कथरी म डार देथें। फेर कुछ दिन से, एक झिन बड़े मनखे हा, डमचगहा बनके गली गली म किंजरत हे। ओहा आथे अऊ अइसे अइसे खेल देखाथे हे के, ओकर खेल के मारे, मोर खेल देखे बर, मरे रोवइया तको नी आवय। जादूगर पूछिस – का खेल देखाथे तेमा ओहा ? डमचगहा बतइस – वो बड़का डमचगहा हा आथे अऊ रंग रंग के बाजा बजाके, बिगन होल करे, पोल खोले बर धरथे। तरहा तरहा के नाच देखाके, अइसे अइसे नावा नावा बात बताथे जेला सुनके जनता मुहु फार देथे। बड़े जिनीस खुरसी म बइठे मनखे ला, सत्ता नाव के तलवार के धार म, केऊ बेर रेंगाथे। गोड़ अनते तनते हो जथे फेर गिरय निही। गोड़ कटा जथे फेर बूंद भर लहू नी निकलय। तहन इही खुरसीधारी मनखे के चाल, चेहरा, चरित्तर अऊ करम धरम उपर, चिखला ला झुला झुलाके उछालथे ………. गली खोर का ………, गांव गांव अऊ सहर सहर के, कोनटा कोनटा मतला जथे फेर, वो खुरसीधारी उपर, खुरसी के रहत ले, नानुक छींटा तक नी परे। इही खेल म मनमाने थपड़ी बाजथे अऊ देखइया मन अड़बड़ खुस होथें। तिहीं बता भलुक, अइसन म मोर खेल ला कोन देखही ….. ?
जादूगर किथे – तोरे कस मोरो धनधा के हाल बेहाल हे यार। एक झिन बड़का जादूगर हेलीकापटर म चइघके आथे। भारी बड़का पनडाल लगवाथे। बड़ तामझाम करवाथे। आसवासन के बड़े बड़े सुनदर सुनदर पेटारा खोलथे। तहन विकास नाव के बिचित्तर खेल देखाथे। ये खेल के ये खासियत आय के, जेहा जम्मो झिन ला नी दिखय, सिरीफ थपड़ी पिटइया अऊ समरथन करइया ला दिखथे। बांकी मन कतको आगू म खड़े रहय, अऊ कतको परयास करय, दिखबेच नी करय। खेल चलत चलत, दुबारा अइसने करे बर, आसीरवाद पा जथे। खेल देखइया मनखे बर, भोजन पानी अऊ पइसा के बेवस्था रहिथे। मेहा अपन जिनगी म, बड़े बड़े खेल देखइया देखे हंव, फेर अतेक जबरदस्त खेल देखइया नी देखे रेहेंव। डमचगहा पूछथे – अइसे कइसे हो सकत हे के, खेल हा कुछ ला दिखथे अऊ कुछ ला नी दिखय। जादूगर किथे – इही तो अचरज के बिसे आये भाई, पता निही का करिया जादू, कतिहां ले सीख के आये हे बैरी हा, जेहा ओकर पइसा के जाल म फंस जथे ततकेच ला ओकर बिकास के खेल दिखथे …….. बांकी मन चुचुवावत रहि जथे। गऊकिन गो, हमर पेट ला मार के धर दिस सतनच्चा हा ……… । ओकर मारे भूख मरे के नउबत आगे …….।
दुनो झिन ला अपन पुसतैनी धनधा के अलावा अऊ कहींच बूता नी आवय। ये मन पेट चलाये बर, अपन अपन बूता ला अपग्रेड करे के सोंचिन। कुछ दिन म, डमचगहा बिपक्छ म अऊ जादूगर पक्छ म संघरगे। कुछ बछर बाद …………., इंकर मुलाखात के जगा बदलगे। अब येमन तरियापार के जगा सनसद भवन अऊ बिधानसभा म मिले लगिन। इंकर पक्का दोसती हा, कच्चा दुसमनी म बदलगे। इंकर खेल देखइया मन, अभू घला तरियापार म मनजन घसरत, डमचगहा बिपक्छ अऊ जादूगर पक्छ के, नावा खेल अऊ नवा जादूगरी के अगोरा करत हे ………।
हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा
बने आभा मारे चमचगहा अउ जादूगर ल सियान